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बुधवार, 29 दिसंबर 2010

तितलियों का खू़न

अंशु मालवीय ने यह कविता विनायक सेन की अन्यायपूर्ण सजा के खिलाफ 27 दिसंबर 2010 को इलाहाबाद के सिविल लाइन्स, सुभाश चौराहे पर तमाम सामाजिक संगठनों द्वारा आयोजित ‘असहमति दिवस’ पर सुनाई। अंशु भाई ने यह कविता 27 दिसंबर की सुबह लिखी। इस कविता के माध्यम से उन्होंने पूरे राज्य के चरित्र को बेनकाब किया है।

वे हमें सबक सिखाना चाहते हैं साथी !

उन्हें पता नहीं

कि वो तुलबा हैं हम

जो मक़तब में आये हैं

सबक सीखकर,

फ़र्क़ बस ये है

कि अलिफ़ के बजाय बे से शुरु किया था हमने

और सबसे पहले लिखा था बग़ावत।

जब हथियार उठाते हैं हम

उन्हें हमसे डर लगता है

जब हथियार नहीं उठाते हम

उन्हें और डर लगता है हमसे

ख़ालिस आदमी उन्हें नंगे खड़े साल के दरख़्त की तरह डराता है

वे फौरन काटना चाहता है उसे।

हमने मान लिया है कि

असीरे इन्सां बहरसूरत

ज़मी पर बहने के लिये है

उन्हें ख़ौफ़ इससे है..... कि हम

जंगलों में बिखरी सूखी पत्तियों पर पड़े

तितलियों के खून का हिसाब मांगने आये हैं।

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