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मंगलवार, 14 दिसंबर 2010

अब मनरेगा ने भी पकडी ठेकेदारी की राह

उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ जिले के कुढा गांव के लालजी हरिजन मनरेगा के जाब कार्ड धारक हैं।सौ दिन काम पाने की गारंटी के तहत उन्हे गांव की ग्राम पंचायत काम उस समय देती ह,ै जब उनके ईंट भट्ठे पर जाने का समय आ जाता है। गांवों मे बैठक के दिनों मे कोई उनकी सुधि नही लेता।अब उनकी मुश्किल यह है िक वे केवल सौ दिन काम करके महज दस हजार में साल भर परिवार की परिवरिश करें या फिर लगातार सात महीने काम पाने के लिए बरसात निकलते ही ईंट भटठे पर काम करने के लिए उत्तर प्रदेश से बाहर चलें जांएं ।
दरअसल यह समस्या केवल लालजी हरिजन की ही नही है इस तरह के न जाने कितने ही लोग इस किस्म के असमंजस से जूझ रहे हैं।दरअसल अक्टूबर के अंतिम सप्ताह का से लेकर जून के प्रथम सप्ताह तक का समय ईंट भटठे पर मजदूरी का होता है। और उत्तर प्रदेश से बाहर हजारों लोग पंजाब चंडीगढ और हरियाणा आदि जगहों पर मजदूरी करने भटठों पर हर साल जाते हैं। लालजी बताते है कि अगर हम सौ दिन का काम पूरा करके भटठे पर काम करने जाना चाहें तो वहां पर भटठा मालिक हमारी जगह दूसरे को काम पर रख लेता है। और हमारे लिए जगह ही नही बचती। लेकिन बरसात के दिनों मे जब हम बेरोजगार होते हैं तो मनरेगा मे कोई काम नही होता। लालजी कहते है कि अगर हम भटठे पर सात माह काम कर लेते है तो हमें लगभग इक्कीस हजार की शुद्ध बचत हो जाती है। लेकिन अगर हम मनरेगा के तहत काम करते हैं तो कुल दस हजार ही मिलते है वह भी महीनों पोस्टाफिस के चक्कर लगाने के बाद।सरकारी दावों से ठीक उलट उनका साफ कहना है कि इस योजना से हम जैसों को अभी तक कोई लाभ नही हुआ है। और इस तरह सरकार की यह महत्वाकांक्षी योजना अपने उद्देश्य को पाने मे पूरी तरह विफल हो रही है।
मजदूर ग्रामीणों की इस तरह की तमाम समस्याओं केा हल करने के लिए अब उप्र सरकार ने हर गरीब को सौ दिन का रोजगार उसके गांव मे ही हर हाल मे उपलब्ध करवाने के लिए मनरेगा मे अब एक नोडल एजेंसी नियुक्त करने का फैसला किया है। और इस योजना का पूरा रोड मैप बनाते हुए एक उप्र सरकार ने एक पत्र केन्द्र सरकार को भेजा था। लेकिन केन्द्र सरकार ने उस पत्र को अपनी आपत्तियों के साथ मायावती सरकार के पास वापस भेज दिया । केन्द्र सरकार ने अपने पत्र मे साफ साफ लिखा है कि इस योजना की मानीटरिंग के लिए किसी भी नोडल एजेंसी को नियुक्त नही किया जा सकता और ऐसा करना गैर कानूनी होगा। इस पर सरकार ने फिर कहा है कि ऐसी ब्यवस्था का एक मात्र उद्देश्य लाभार्थियों को अधिकतम लाभ पहुंचाना है। और उप्र सरकार ने फिर से इसे पास करने की मांग की है।
गौरतलब है कि उप्र सरकार हर मनरेगा जाब कार्ड धारक को हर हालात मे सौ दिन का रोजगार देने के लिए कमर कस चुकी है। इसके लिए सरकार ने राष्ट्ीय स्तर की किसी संस्था को नोडल एजेंसी के रूप मे नियुक्त करके उसकी निगरानी में हर जाब कार्ड धारक को काम मुहैया करवाने की योजना बनाई है। सरकार की परिकल्पना यह है कि यह नोडल एजेंसी सिविल सोसाइटी आर्गेनाइजेशन्स के माध्यम से गरीबों का एक कंप्युटराइज डेटा बेस तैयार कराएगी । फिर गरीबों के समूह गठित कर मनरेगा की निर्धारित प्रकृया के अनुसार उनसे रोजगार के लिए आवेदन कराया जाएगा।जाब कार्ड न होने की स्थिति में यह एजेंसी कार्ड भी बनाएगी। लोंगों को सौ दिन का रोजगार मुहैया कराने पर सोसाइटी को एक सौ बीस रू दिये जाएगें
इसके अलावा प्रति परिवार 06 रु का कमीशन भी नोडल एजेंसी को सरकार द्वारा दिए जाएगें । और इस नोडल एजेंसी का पूरा प्रयास यह होगा कि मौसमी बेरोजगारी या फिर बैठक के दिनों में आम ग्रामीण को अधिकतम काम दिया जाय,ताकि अगर ग्रामीण अन्य मौसमों मे बाहर भी जाना हीें तो भी उन्हे उनके इस हक को दिया जा सके।
लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार की यह मंशा कामयाब होती नही दिख रही है।केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय में संयुक्त सचिव अमिता शर्मा ने राज्य सरकार की इस ब्यवस्था पर कडी आपत्तियां उठाई हैं। उनका कहना है कि मनरेगा कानून मे 100 दिन का रोजगार पाना बेरोजगारों का अधिकार है । और इसके लिए किसी कमीशन एजेंट को नियुक्त नही किया जा सकता है।मनरेगा मजदूरों को कान्ट्ेक्ट लेबर बनाना किसी भी दृष्टि से ठीक नही है।
ल्ेाकिन इससे ठीक इतर प्रदेश के ग्राम्य विकास सचिव मनोज कुमार सिंह शाशन की इस ब्यवस्था को मनरेगा की इस उद्देश्य पूर्ति में सहायक मानते हैं।वे तर्क देते है कि इस तरह का फैसला गरीबों को चिन्हित करके उनहे गांवों मे ही 100 दिन का निश्चित रोजगार देने की दिशा मे पूर्णतया मददगार साबित होगा।उन्होने जोर देकर कहा कि इस तरह के प्राविधानों द्वारा राज्य सरकार की मंशा इस योजना के प्राविधानों का उल्लंघन करने की नही है और इस ब्यवस्था को बनाने मे मनरेगा के प्राविधानों को पूरी तरह ध्यान मे रखा गया है।
हलांकि सरकार द्वारा आम जाब कार्ड धारक को अधिकतम लाभ देने के लिए भले ही इस किस्म की प्रतिबदृध्ता दोहराई जा रही हो लेकिन मनरेगा के जानकार इस ब्यवस्था को संदेह की निगाह सेे देखते हैं।जन संघर्ष मोर्चा के बैनर तले आम लोंगों की बेहतरी के लिए काम कर रहे राघवेन्द्र प्रताप सिंह कहते है कि यह ब्यवस्था एक तरह से ठेकेदारी प्रथा जैसी ही होगी।जो आम आदमी का सिर्फ शोषण ही करेगी।अगर सरकार सचमुच आम जाब कार्ड धारक के हित को लेकर इतनी सचेत है तो उसे अपनी नौकरशाही को दुरुस्त करना चाहिए क्योकि आज मनरेगा जैसे राष्टृीय कार्यक्रम को इनकी भ्रष्ट नजर लग चुकी है।और अगर यह योजना लागू हो सके तो यह योजना गांवो के लिए एक बरदान हो साबित हो सकती है अैार ग्रामीणों के शहरों की ओर पलायन को काफी हद तक रोक सकती है।
लेकिन इससे इतर सामाजिक कार्यकर्ता राजीव का मानना है कि इस तरह की योजनाएं सिर्फ आम जन को मूर्ख बनाने के लिए ही हैं। वे पूछते है िक इस योजना से कैसे ग्रामीणों का शहरों की ओर पलायन रुक सकता है़ै । महज 10 हजार में कोई परिवार साल भर कैसे गुजर कर सकता है।बकौल राजीव जब गांव और शहर में काफी अंतर हो,पैसे की तरलता का अंतर हो तो एक ग्रामीण गांव मे साल भर कैसे रोजी पा सकेगा़? गांव मे तो पूरे साल रोजगार ही नही है फिर पलायन क्यों नही होगा?वे साफ कहते है कि अब मनरेगा मे नौकरशाही की लूट के बाद ठेकेदारों को भी लूट का आमंत्रण दिया जा रहा है।
बहरहाल सरकार की मंशा चाहे जो भी हो लेकिन यह तय है कि मनरेगा जैसी राष्ट्ीय महत्व की योजना मे जितनी ही सुधार की प्रतिबद्ध्ता दिखाई गयी, स्थिति ठीक उलट होती गयी और पूरी योजना ही इस समय भ्रष्टाचार के गंभीर भवर मे फंस गयी है। अब देखना यह होगा कि इस ब्यवस्था से आम ग्रामीण के हालातों मे कितना सुधार आता है।

हरे राम मिश्र
स्वतंत्र पत्रकार

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