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सोमवार, 13 जून 2011

प्रो. तुलसी राम बनें ‘दलित लेखक संघ’ के अध्यक्ष



पिछले दिनों (11 जून 2011), नई दिल्ली मे बुलायी गई आमसभा की बैठक में नए पदाधिकारियों एवं कार्यकारिणी का चुनाव संपन्न हुआ। चुनाव की पूरी प्रक्रिया चार चुनाव अधिकारियों, प्रो0 गोपेश्वर सिंह (अध्यक्ष, हिन्दी विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय) डा. आर.पी. ममगाईं (निदेशक भारतीया दलित अध्ययन संस्थान) प्रो. सुबोध मालाकर (जे.एन.यू.) श्री चन्द्रभूषण (वरिष्ठ पत्रकार, नवभारत टाईम्स) दो पर्यवेक्षक प्रो. चौथीराम यादव (बनारस विश्वविद्यालय) एवं प्रो. वी. एन. पांडे (रांची विश्वविद्यालय) की देख रेख में लोकतांत्रित विधी एवं आम सहमती से पूरी की गई। इस आमसभा में ‘दलित लेखक संघ’ के लगभग साठ रचनाकारों में भाग लिया।
अध्यक्ष पद पर सर्वसम्मती से प्रो. तुलसी राम को चुना गया। उपाध्यक्ष के दो पदों पर प्रो. हेमलता महिश्वर एवं पना लाल, महासचिव पद पर डा राम चंद्र, सचिव पद पर डा. कौशल पंवार, सह-सचिव के चार पदों पर डा. सुमित्रा महरोल, राज वालमीकि, डा. हेमलता एवं जाकिर हुसैन, मीडिया सचिव के पद पर विनोद सोनकर, कोषाध्यक्ष पद पर दिलीम कठेरिया, कार्यकारिणी सदस्यों में सावी सावरकर, अनिल सुर्या, इंतिजार नईम, सूरज बड़त्या, विनीता रानी, अभय खाखा, प्रमोद कुमार, मीनाक्षी, प्रवीण कुमार, ब्रह्नंद, शिवदत्त, ब्राती विश्वास, सतीश चन्द्रा एवं केदार प्रसाद मीणा का सर्वसम्मति से चयन हुआ। इस कार्यकारिणी का कार्यकाल तीन वर्ष होगा। आम सहमति से प्रो. विमल थोरात को द्लेस का संरक्षक बनाया गया।
दलेस का अध्यक्ष पद ग्रहण करते हुए प्रो. तुलसी राम ने अपने वक्तव्य में दलित साहित्य को व्यापक फलक से जोड़ते हुए कहा कि बुद्ध, फुले, अम्बेडकर की वैचारिकी लोकतांत्रिक वैचारिकी है। जातिवाद, सांप्रदायिकता और क्षेत्रीयता इसके तीन बड़े दुश्मन है। दलित साहित्य प्रगतिशील विचारकों पर आक्रमणकारी टीका टिप्पणी का भी विरोध करता है। हमें यह नहीं भुलना चाहिए कि प्रतिरोध की परंपरा प्रगतिशील लोगों के बिना पूरी नहीं होगी।
प्रो. गोपेशवर सिंह ने दलेस की नवनिर्वाचित कार्यकारिणी को बधाई देते हुए कहा कि दलित रचनाकार अपनी रचनाओं के माध्यम से दलित साहित्य को ऐसे मुकाम पर ले जाए की वह भारत के मुख्य धारा के साहित्य के रूप में स्थापित हो और दलित शब्द से मुक्त हो जाए।
चुनाव पर्यवेक्षक प्रो चौथीराम यादव ने अपने वक्तव्य में कहा कि जाति आधारित सामाजिक संरचना वाले भारत देश में मुक्तिकामी विचारधारा मार्कसवाद की सफलता का रास्ता अम्बेडकर के दर्शन को बाईपास करके नहीं जा सकता। उसे वाया अम्बेडकरवाद ही जाना होगा।
नवनिर्वाचित महासचिव डा. रामचंद्र ने कार्यभार संभालते हुए कहा कि ‘दलेस‘ दलित साहित्य आंदोलन की वैचारिकी से सबंद्ध होकर कार्य करेगा। दिल्ली व दिल्ली से बाहर गांव देहात में दलित साहित्य आंदोलन की नई पीड़ी के शिक्षण-प्रशिक्षण द्वारा दलित साहित्य को राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय फलक पर विस्तार देने का प्रयास करेगा। इसी क्रम में प्रो. हेमलता महिश्वर, पन्नालाल, डा. आर.पी. ममगाईं, प्रो. सुबोध मालाकार, श्री चन्द्रभूषण, प्रो. वी.एन. पांडे ने नई कार्यकारिणी को बधाई देते हुए अपने विचार रखे। संचालन दिलीप कठेरिया एवं डा. रामचंद्र ने किया।
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दिलीप कठेरिया, कोषाध्यक्ष, दलित लेखक संघ, नई दिल्ली।

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